Gibberish-नामा
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जीवन कौतुक से है
एक बच्चे और उसके कागज़ों पर गड़गड़ाता उसका कलम, स्याही से बिखरे टेढ़े-मेढ़े पक्षी कौतुक है, जीवन है। उसी बच्चे के “ऐसा-क्यों” की रेल, जब भगति है और गंतव्य भूल कर बस मद-मस्त चलती है, वही कौतुक है।
वृक्षों की जड़ो का धरती चीर कर पानी ढूँढना कुतूहल ही तो है। उसके रहन-बसन की एकमात्र कड़ी ही हो भला। जीवन कौतुक से है।
प्रेम भी कुतूहल है। अपने को समझने की जिज्ञासा, शायद एक कदम बढ़कर और किसी को समेटने की चेष्टा। हाँ, शायद दर्द और विरह का मार्गदर्शन भी है। जहाँ सीख है, वही कुतूहल और वही जीवन।